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Wednesday, November 2, 2022

पोथी चित्रण क्या है What is Manuscript Painting

 

पोथी चित्रण क्या है ?

भारतीय कला परम्परा में लघु चित्र कला विभिन्न प्रकार से प्रदर्शित की गई | इस कला के कलाकार समय, स्थान और व्यवस्था के अनुरूप अपनी कला को समाज के बीच लाया | जब मध्यकाल की बात आती है तो हमें पहाड़ी शैली, राजस्थानी शैली और मुग़ल काल की लघु चित्र शैली की कला सामने आ पड़ती है | इन्हीं कलाओं के अन्तरंग में जैन शैली और अपभ्रंश शैलियाँ उभरकर हमारे सामने आती हैं | भारतीय कला राजाओं, बादशाहों, सामंतों के द्वारा हर समय संरक्षित रही जिससे कलाकारों के आय के साधन भी प्राप्त हुए तथा कलात्मक सौंदर्य की उत्तरोत्तर वृद्धि भी होती गई | इसी सन्दर्भ में पोथी चित्रण एक ऐसी कला हुई जिसके निर्मिती में कलाकार चित्र के साथ जीवनी, कथा, सन्देश को कलमों के द्वारा स्याही के प्रयोग से अक्षरांकन करते थे तथा प्राकृतिक एवं कृत्रिम रंगों से चित्रण करते थे | इनके अंकन में पशु-पक्षी, मानव, प्राकृतिक दृश्यावली आदि को संकलित किया जाता था |

पोथी चित्र उत्तर मध्य काल (1000 ई. से 1500 ई.) में गुजरात, मध्यप्रदेश व बंगाल में सचित्र पोथियों का काफी निर्माण हुआ। यह पोथी-चित्रण शैली अनेक नामों से पुकारी गयी जैसे पाल-शैली, जैन-पुस्तक शैली, पश्चिमी शैली, गुजरात शैली आदि। रायकृष्णदास ने स्थान, विषय या धर्म के आधार पर नामकरण करने के बजाय रूप व अंकन पद्धति की विशेषताओं के आधार पर सबको 'अपभ्रंश शैली' नाम दिया है। इस शैली में चित्रकला का पतनोन्मुख रूप ही देखने को मिलता है जो कला की दृष्टि से महत्त्व का न होकर ऐतिहासिक कालक्रम व लघुचित्रकला के विकास को समझने में सहायक है। काली. स्याही की कठोर बाह्य रेखाएँ, भावहीन आकृतियाँ, आकृतियों का सामान्यीकरण, गुड्डे गुड्डियों के सदृश समरूप आकृतियाँ, नुकीली लम्बी नाक, छोटी सी ठुड्डी, कर्णस्पर्शी आँख, एक चश्म आकृति में नाक पर दूसरी आँख का अंकन व देवी-देवताओं की पहचान केवल वाहन - पशुओं से संभव होना इस शैली की विशेषताएँ हैं। चित्रों के साथ प्रायः सुन्दर अक्षरलेखन हुआ है। रंगांकन में विशुद्ध चटकीले रंगों का प्रयोग है। पाल शैली के चित्र अच्छे तालपत्रों की पोथियों पर अंकित हैं जबकि अन्य शैलियों की पोथियों के लिए तालपत्रों के अलावा वसली (कागज) का प्रयोग अधिक हुआ है। चित्रित पोथियों में 'कल्पसूत्र', श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय 'निशीथ चूर्ण', कथा सरित्सागर, नेमीनाथ चरित्र उल्लेखनीय हैं। 16वीं सदी की कालीदास के ऋतुसंहार पर आधारित 'रतिरहस्य' एवं लौरचन्दा व बालगोपाल स्तुति पोथी चित्रण के सुन्दर उदाहरण हैं। पोथीचित्रों के अलावा वसन्तविलास की पटपत्री व सोलह देवियों के चित्रों की पटपत्री अपभ्रंश शैली में चित्रित हैं।

      बंगाल में पाल शासकों के संरक्षण में विकसित पाल पोथीशैली की तालपत्रों की पोथियाँ नालन्दा, विक्रमशिला व भागलपुर से प्राप्त हुई हैं। इनके विषय बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं और उनमें बुद्ध व बोधिसत्वों के चित्र अंकित हैं। प्रज्ञापरमिता, साधनामाला, पंचशिखा व करनदेवगुहा इनके उल्लेखनीय उदाहरण हैं।

     इनके चित्रण में धर्मशास्त्रों के विषय के साथ राजाओं, बादशाहों, के आदेश तथा ईश्वरीय शक्तियों के चेतन और अवचेतन की व्याख्या की गई है |

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