स्वतन्त्रता के बाद की भारतीय कला समूहें
एक तरफ भारतीय स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन
कर रहे थे तो दूसरी तरफ अंग्रेजों ने भारतियों पर सितम ढा रहे थे | इसी बीच भारतीय
युवा अपनी सोच को कुछ अलग कर कला को हथियार बनाये और उसी कला को स्वतंत्रता
आन्दोलन के बाद देश के कोने-कोने तक फ़ैलाने में सफल हुए | अब बात आती है कि आखिर
भारतीय कलाकारों ने एकजुटता कैसे दिखाई ? तो हमारे कलाकार विभिन्न समूहों में
बंटकर कला सृजन को आगे बढ़ाया | इन समूहों में में मुख्या भूमिका कलकत्ता ग्रुप और
बम्बई आर्ट ग्रुप का रहा है |
बंगाली जीवन शैली में जीनेवाले कलाकार यामिनीराय
और अमृता शेरगिल पंजाबी समाज से आनेवाली की जिंदगी मात्र 29 वर्ष के अन्दर ही
समाप्त हो गई की प्रगतिशील कृतियों ने भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में हलचल पैदा
कर दी और अब हम एक स्वतंत्रता आन्दोलन के बाद वैज्ञानिक युग के साथ आधुनिक विचारधाराओं
में धीरे-धीरे बंधने लगे । इस युग की कला में रूढ़िवादी परम्परा या रसाभिव्यक्ति
को वह स्थान प्राप्त नहीं है जो बौद्धिकता या तर्क को है। 1940
ई. तक भारत में नवीन
विचारधारा स्वछन्द रूप से प्रवाहित होने लगी और अनेक चित्रकारों ने पाश्चात्य
देशों की नवीन प्रवृत्तियों को लेकर यथार्थवादी यथा यथार्थवादी (स्वप्निल शैली),
धनवादी,
रचनावादी प्रभाववादी,
अभिव्यंजनावादी,
सूक्ष्मवादी (अस्फुट)
तथा प्रगतिवादी प्रवृत्ति को अपनी कृतियों में दर्शाया है। इन चित्रकारों ने इस
बात को समझा कि यूरोप की ऐकेडेमी शैली के अतिरिक्त अनेक चित्र शैलियाँ हैं. जिनकी
चित्रण पद्धति अधिक बलवती है और भारतीय चित्रकारों को अपने परम्परागत अतीत की कला
से लिपटा रहना भ्रान्तिपूर्ण है। इन चित्रकारों ने वर्तमान में अपनी आस्था
प्रदर्शित की और वर्तमान में आकर्षक रूप को पहचाना। कला वह सरिता है जो सदैव अपने
मार्ग को बदलती रहती है और युग, जाति, देश रूपी तटों का प्रतिबिम्ब उस पर पड़ता रहता है। कला वैज्ञानिक साधनों की
उपलब्धि है और विकास के साथ सदैव ही परिवर्तनशील और विकासोन्मुख होती रहती है।
ब्राकुये, साने. खार्विस्की और पिकासो का पेरिस
हमारे समय का प्रधान अन्तर्राष्ट्रीय कला-केन्द्र है और कलाकारों की प्रेरणा का
स्रोत है। भारतवर्ष के आधुनिक कलाकारों के केन्द्र मुख्यतया कलकत्ता,
बम्बई तथा दिल्ली हैं
और इन कलाकारों को इन केन्द्रों के आधार पर तीन वर्गों में रखा जा सकता है। यद्यपि
यह सीमा भौगोलिक ही होगी और कलात्मक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है,
क्योंकि इन नूतनवादी
कलाकारों ने अपनी निजी और मौलिक सत्ता को कलासृजन में सर्वोपरि आधार माना है।
कलकत्ता ग्रुप-
कलकत्ता के नवोदित प्रगतिशील कलाकारों ने
अपने को 'कलकत्ता ग्रुप' के नाम से पुकारा है। इस दल के कलाकार युग की वैज्ञानिक उपलब्धि और प्रगति
के प्रति जागरूक रहे। यह कलाकार अब भारत के अनेक भागों में फैल गए हैं। इस ग्रुप
का आरम्भ 1943 ई. में अकाल पीड़ित बंगाल में हुआ अतः इस दल के कलाकार मानववादी हैं। इन
चित्रकारों में रवीनमैत्रा, गोपाल घोष, सुनील माधव सेन, प्राणकृष्ण पाल, गोवर्धन बासु, कमलादास गुप्ता आदि चित्रकार हैं। गोवर्धनसेन,
हेमंत मिश्रा तथा
पारितोष सेन का कलकत्ता ग्रुप के कलाकारों में प्रमुख नाम हैं। इन चित्रकारों ने
प्रभाव शैली के आधार पर चित्र रचनाएँ की हैं या लोककला को इन चित्रकारों ने अपनी
कला का आधार माना है। इन चित्रकारों ने लोककला के प्रतीकों और उसकी सरलता से बहुत
कुछ ग्रहण किया है।
नवीन प्रयोग की झलक -
स्वतन्त्रता के पश्चात्
मनीषी डे, शैलोज मुखर्जी तथा सुधीर
रंजन खास्तगीर ने परम्परागत कला का उद्धार करने के लिए प्रयत्न किये। उन्होंने
लोककला से प्राचीन कला की विशेषताओं को ग्रहण करने का प्रयास किया और प्रभाववादी
प्रवृत्तियों को अपनाया।
बम्बई तथा दिल्ली के
प्रगतिशील कलाकार समूह-
कला के नवीन विकास में
बम्बई तथा दिल्ली दल के कलाकारों का विशेष महत्व है। बम्बई दल के कलाकारों में
अनेक स्वयं कुशल प्रयोगशील चित्रकार हैं और किसी नाम विशेष का बंधन स्वीकार नहीं
करते। इन चित्रकारों में बेंद्रे, माली, रावल, छावड़ा, अलमेलकर, सातवलेकर
और अरुणबोस हैं। इन चित्रकारों के अतिरिक्त कुछ ऐसे प्रभावशाली चित्रकार हैं जो
अपने लिए 'प्रोग्रेसिव ग्रुप' के नाम
से पुकारते हैं। इन चित्रकारों में हुसैन, फ्रांसिस, सूजा, आरा, रजा, गोडे, हैब्बर, अकबर
पदमसी, लक्ष्मण पई आदि हैं। इन
चित्रकारों ने अपनी कृतियों में व्यवस्था, आकार और रंग योजना को ही
प्रधानता दी है और किसी पुरानी शैली या कला आन्दोलन का समर्थन नहीं किया है।
आधुनिक कला को आगे बढ़ाने
वाले कलाकार -
भारत की राजधानी दिल्ली में
भी जैसा स्वाभाविक है चित्रकारों का एक नूतनवादी दल विकसित हो चुका है। यह दल किसी
वर्ग विशेष के अन्तर्गत नहीं आता। यहाँ के अग्रगण्य चित्रकारों में कुलकर्णी, भावेश
सान्याल, कंवलकृष्ण, सतीश
गुजराल, शांति दुबे, सुल्तान
अली, शैलोज मुखर्जी, वीरेन डे, दिनकर
कौशिक, बद्री, के.
सी. आर्यन, अविनाश चन्द्र, स्वामी
नाथन, कृष्णा खन्ना हैं। नूतनवादी भारतीय चित्रकारों में
गायताडे, वीरेन डे, जी.आर.
संतोष, के.सी. पन्नीकर, भूपेन, सुन्दरम्, विकास
भट्टाचार्य, जगमोहन चोपड़ा, गुलाम
शेख, मनुपारिख, ए. रायना, त्रिलोक
कौल, पम्मीलाल, एस. नन्द गोपाल, गणेश
पिपाठे, लक्ष्मण पै., हरे
कृष्ण लाल, जयराम पटेल, विभवदास
गुप्त, प्रदोषदास गुप्त, प्रफुल्ला, वी.
प्रभा, दीपक बैनर्जी, अनुपम
सूद, जयंत, पारिख, होरे, अम्बादास
आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। अब हम इनके व्यावहारिक पक्ष को देखें तो हमें इसमें
आमदनी के अनेकों राह दिखाई दे रहे हैं |
हमारे आर्थिक पक्ष-
हमारी कला परंपरा में लोक
संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक चित्रकला के सृजन से आज बहुत सारी कला दीर्घाएँ चित्रों
की प्रदर्शनी कर लाखों रुपये कमारहे हैं | इसे आय का साधन बनाकर अपनी रोजगार को
आगे बढ़ा रहे हैं | चित्र निर्माण, मूर्ति निर्माण के अलावा हस्तकलाएँ भी हमारे
समाज में आमदनी के स्रोत बन चुके हैं |
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