शिक्षण व्यवसाय क्या है What is Teaching Profession - TECHNO ART EDUCATION

Friday, December 9, 2022

शिक्षण व्यवसाय क्या है What is Teaching Profession

 

शिक्षण व्यवसाय की वास्तविकता

    अध्यापक को अपनी गरिमा समझने और उन्हें प्रदर्शित करने में कोई परिस्थितियाँ बाधा पहीं पहुँचा सकती। जहाँ तक शिक्षणतंत्र में वेतन की संविधाओं को बढ़ाने की बात है उसे पूरा किया जासकता है। इससे होता यह है कि शिक्षकों में हीन भावना की विचारधारा को खत्म किया जा सकता है। इस कार्य में शिक्षकों को अपनी निष्ठा, एवं जिम्मेवारी को देखते हुए कार्य करना चाहिए। इस गरिमा को शिक्षकगण स्वयं अपने बलबूते पर कायम रख सकते हैं। विद्यार्थी अपने महत्त्वपूर्ण समय को विद्यालय में अध्यापकों के साथ रहकर व्यतीत करते हैं। उनके प्रति सहज श्रद्धा, और कृतज्ञता का भाव भी रहता है। शिक्षकों के कार्यों और उपकारों को भुलाया नहीं जा सकता है । गुरु किसी भी उम्र के हों उनके योगदान में छात्रों के लिए कोई बाधा उत्त्पन्न नहीं कर सकती है । शिक्षा के क्षेत्र में नए अवसरों ने न तो केवल स्टूडेंट्स के लिए ज्ञान के दरवाजे खोले हैं बल्कि शिक्षकों को भी कई तरह के अवसर मुहैया कराए हैं।

हमारे देश में शिक्षक को गुरु का दर्जा दिया गया है जिसमें शिक्षक शब्द अपने आप में काफी गौरव प्रदान करनेवाला है जिससे यह साबित हो जाता है कि यह व्यवसाय समाज में सबसे ऊँचा स्थान रखता है। बेरोजगारी के परिप्रेक्ष्य में यदि कोई सहज और सुलभ रोजगार को देखा जाये तो भारत जैसे देश में ज्यादा से ज्यादा नौजवान ही शिक्षक बनना पसंद करते हैं। वैश्वीकरण के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में  शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए निरंतर विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा रही है। इस कार्य को करने में सरकार, समाज के बुद्धिजीवी लोगों के द्वारा आर्थिक सहायता दे कर इसे खोला जा रहा है।  हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा की शिक्षण के क्षेत्र में योग्य और प्रशिक्षित अध्यापकों की नितांत आवश्यकता पड़ेगी, इसके समूचित उपाय से ही शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण कार्य संभव हो सकेगा। हमे इस बात की कल्पना हर समय एक शिक्षित समाज की ओर जाती है परन्तु यह तभी संभव हो सकेगा जब हमारे देश के हर व्यक्ति को  शिक्षित करने वाले शिक्षकों को अवसर प्रदान किया जाये। शिक्षक को सम्मानजनक स्थान दिलाने में विशिष्ट भूमिका निभाने वाले हमारे समाज के शिक्षित लोग ही हैं वरना उन्हें उनकी वास्तविकता की महक को कौन बता सकता है। आज से पूर्ववर्ती वर्षों में देखा जाये तो शिक्षक को गुरू और ईश्वर का दर्जा दिया जाता था। यदि हम प्राचीन काल की सन्दर्भ लेते हैं तो जहाँ गुरूकुल की परम्परा काफी विश्वसनीय और निष्पक्ष समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाता था।

आज के आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शिक्षक के व्यवहार, कार्यकुशलता , विश्वसनीयता के साथ शिक्षकों को भी अपनी भूमिका को समझना होगा जिससे समाज के हर व्यक्ति को शिक्षक की भूमिका पर कोई संदेह न हो सके और यह उनके स्वयं के सीमा के अन्दर रहकर खुले दिल से अपना प्रदर्शन करना होगा। यदि इसके विपरीत कोई परिस्थिति उत्पन्न होती है तो उसका पूर्ण दायित्व शिक्षक को ही जायेगा। देश में शिक्षा का गिरता हुआ स्तर ऊपर उठाने के लिये समाज के हर नागरिक को आगे आना होगा जिससे  एक कर्तव्यनिष्ठ, जागरूक, निष्ठावान, प्रतिभावान शिक्षक जो देश को आगे बढ़ा सके


हमें इस बात का सदैव आभास होता रहेगा जब निष्ठांपूर्ण, ज्ञानी, विषय के ज्ञाता, कर्त्तव्यपरायण शिक्षक अपने जिम्मेवारी के प्रति उत्तरदायी रहेंगे। अब हम शिक्षक के प्रति उनके एक दोहे से इस बात को साबित करेंगे कि "गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है गढ़ी गढ़ काढ़े खोट अंतर हाथ सहार के बाहर मारे चोट।" इस बात से पूर्ण साबित हो जाता है कि गुरु का कर्तव्य खराब शिष्य को सही बनाने के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन  करना है क्योंकि जैसे हम एक मिट्टी को कुम्हार के द्वारा घड़े के निर्माण को देखते हैं जिसमें मिट्टी की सुन्दरता को  एक वास्तविक स्वरुप देने में घड़े के अन्दर हाथ लगा कर उसकी निरूप्ता को एकरूपता में बदल देता है और वह घड़ा शीतल जल स्वयं में भंडारित कर गर्मी के दिन में ठंडे पानी के साथ हमें सुकून का एहसास दिलाताजिससे हमारे जीवन में काफी परिवर्तन आता है इसीलिए हम यह समझते हैं कि छात्रों के भविष्य को अच्छे बनाने में शिक्षक का पूर्ण योगदान होना चाहिए यह समाज के प्रति एक आभार व्यक्त होता है और विश्वास को जागृत करता है

 

शिक्षक की सच्ची आकांक्षाऐं

 

शिक्षक समाज के एक आदर्श व्यक्ति माने जाते हैं । जिनकी जिम्मेवारी एक महान व्यक्तित्व का निर्माण करने में होता है प्रति व्यक्ति इस बात का आभास होना चाहिए कि उनको जीने के लिए उनके की आवश्यकता की पूर्ति हो इस छुदातृप्ति (पेट चलाने) की व्यवस्था में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न न हो तभी तो एक शिक्षक अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रह पायेगा। शिक्षक को पढ़ाने के अलावा उन्हें उचित पारिश्रमिक उनका सम्मान उनका इज्जत उनके प्रति विश्वास हर चीज को सामने आना बहुत जरूरी है और इसी से उनमें सेवा भाव के साथ-साथ उनके पीछे पड़े परिवार के भरण-पोषण की भी व्यवस्था हो सके। यह हमारा कर्तव्य है ताकि समाज में आदर्श व्यक्ति को अपना एक सम्मान पूर्ण योग्यता के अनुरूप आर्थिक लाभ मिलता रहे। इसमें सर्कार और समाज को आगे आना होगा इसके बाद ही हम सभ्य समाज के सर्वांगीण विकास की बात कर सकते हैं ।

 

शिक्षक और समाज के बीच व्यावहारिक सम्बन्ध

 

1. अध्यापक छात्र के बीच अटूट विश्वास का होना ।

2. छात्र-छात्राएं में किशोरावस्था में गलत कदम न उठा पायें क्योंकि माता-पिता के सामने यह एक नयी समस्या के साथ अच्छे बुरे का भी समय होता है जिसमें किशोर अक्सर नकारात्मक विचारों के प्रति ज्यादा हि आकर्षित होने लगते हैं ।

3. छात्रों में समय के महत्व की समझ होनी अतिआवश्यक है ।

4. छात्र और शिक्षकों के बीच संचार माध्यमों शून्यता न हो तथा शिक्षकों द्वारा बताए गए अनुदेशों का पालन अच्छा से हो सके ।

5.  विद्यार्थी शिक्षक द्वारा बताये गए कार्य जैसे- समय पर अध्यापन, गृहकार्य, समाजसेवी कार्य को निष्ठापूर्वक कर सकें।

6.  अध्यापकों के सम्मान में कोई कमी न हो जिससे उन्हें विपरित परिस्थिति का सामना करना पड़े।

7. अध्यापकों के गुणवत्ता को पहचानने में समाज और सरकार की सोच सकारात्मक हो।

8. अध्यापकों के वेतन, पदोन्नति व सेवानिवृति के प्रति संचालक, संस्थान और सरकार ससमय वेतन भुगतान कर शेष कार्य को निष्पादित करे ।

9. समय- समय पर शिक्षकों को पुरस्कृत कर पारितोषित तथा उपाधि प्रदान की जाय।


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