देवी के प्रमुख स्वरूप कौन-कौन से हैं How many different images of Devi Dodess - TECHNO ART EDUCATION

Wednesday, December 7, 2022

देवी के प्रमुख स्वरूप कौन-कौन से हैं How many different images of Devi Dodess

धर्म में देवी के प्रमुख स्वरूप कौन-कौन से हैं ?

भारत एक मूर्तिपूजक देश है। यहाँ के वासी अपने जीवन के हर क्षेत्र में कर्मकाण्ड से जुड़ी भावनाओं एक सिद्धांतों के प्रतिपादन से अपने सभी कार्यों को संपादित करते हैं। इसी तथ्य को आधार  मानकर धर्म के विभिन्न विचारों की व्याख्या इसके आलोक में किया जाता है। 

आइए हम अब धर्म की चर्चा कुछ विशिष्टता के साथ करते हैं। हम जानते हैं कि हिन्दु धर्म में देवी-देवताओं की प्रधानता आदिकाल से हीं की जाती हैं। मुख्यतः देवताओं के साथ ऋषि मुनियों की भी बात सामने आती हैं. जिस में कुछ सांसारिक जीवन से संबंध रखते थे तो कुछ आजीवन ब्रह्राचर्य के रूप में।

इस आलेख में हम देवी के स्वरूपों तथा विभिन्न नामों की चर्चा करेंगे। हम जानते हैं कि नारी एक शक्ति है और यह सृष्टि की रचना करने में अपनी पूर्ण भागीदारी दर्ज कराती हैं। इसमें अनन्त शक्तियों का प्रदर्शन भी हमारे सामने प्रमाणित होता है । विभिन्न हिन्दू धर्म्शात्रों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद, ब्राह्मण, अरन्यकों एवं संहिताओं में जिन देवियों का वर्णन मिलता है उनमें, दुर्गा, काली, सरस्वती, पार्वती, अम्बिका प्रमुख हैं तथा यह आज विभिन्न स्वरूपों में पूजी जाती हैं। यदि हम पुरातात्विक स्रोत का अध्ययन करें तो पाते हैं कि सिन्धु घाटी सभ्यता में खुदाई के दौरान कुछ मनके, सिक्के मुहरें आदि के साथ मातृदेवी की मूर्ति भी प्राप्त हुई है जिससे पूर्णत: यह प्रमाणित हो चुका है कि हमारा समाज धर्म के साथ एक शास्वत जीवन जीने में भी खूब आनन्द का अनुभव किया है। जहाँ पुरुष महिला आदि में दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुओं के साथ देवी देवताओं के आकृति का अंकन भी प्राप्त हुआ है ।  

 

देवी-देवियों के स्वरूपें-

 


लक्ष्मी - भगवान विष्णु की अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है जिसकी पूजा अतीत से आज तक संपदा और एश्वर्य के साथ उन्हें समृद्धि का वाहक मानी जाती है। इनके दोनों हाथों में कमल के फूल दाएँ बाएँ दो हाथियों को खड़ा दिखाया गया है। लक्ष्मी का आसन, भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है। अग्निपुराण के अनुसार लक्ष्मी को चार बाँहों वाला बताया गया है।

 

सरस्वती - विद्या के दात्री ज्ञान-विज्ञान की अधिष्ठात्री को देवी के स्वरूप में माना गया

 है। इनका आसन हंस के सवारी के साथ दिखाया गया है तथा इन्हें भी चार बाहों से सुशोभित किया गया है। इनके चारो हाथ में क्रमश: अक्षरमाला वीणा, अंकुश तथा पुस्तक घारित देवी के रूप में सरस्वती के नाम से सुशोभित किया गया । श्वेत वस्त्र और श्वेत कमल भी शोभित है।

 

पार्वती – विश्व के संहारकर्त्ता की धर्मपत्ती होने का अवसर माता पार्वती को जाता है जिनका जन्म कैलाश में और हिमाचल की पुत्री होने का सौभाग्य प्राप्त है। उनके स्वरूप में आठभुजाएँ, अक्षमाला का निरुपण दिखाया गया है। उन्हें गणेश, और स्कन्द के मात्ता भी कहा जाता है।

 

दुर्गा - नौ हाथों वाली माता शक्ति के रूप में जगत जननी श्री दुर्गा का नामाकरण धर्म शास्त्रों में दिया गया है जो शक्ति स्वरूपा जगत जननी के रूप में हम जानते हैं। इनमें दो रूप मुख्य है एक संहारित दुर्गा और इसकी दूसरी वैष्णवी दुर्गा। शुभभेदागम में माता दुर्गा की उत्पत्ति आदि शक्ति से बताई गई हैं। हिन्दू ग्रंथों के अनुसार दुर्गा के चार या  आठ भुजाएँ होनी चाहिए परन्तु हमें नौ दुर्गा के रूप में नौ बाँहों वाली दुर्गा भी देखी व पूजी जाती हैं।

इनकी भुजाओं में, शंख, चक्र, धनुष, वाण, शूल, खड्‌ग, खेटक और पाश दिखाया गया है। दुर्गा को सिर पर मुकुट और सिंहारूढ़ दिखाया गया है।

 

महिषासुरमर्दिनी - रौद्र रूप को दिखाने के लिए आदि शक्ति को देवी के रूप में हमें देखने को मिलता है। देवासुर संग्राम में महिषासुर का वध करते हुए दुर्गा का रूप को हम महिषा सुरमर्दिनी के नाम से  जान पाते हैं शिल्परत्न के अनुसार महिषासुरमर्दिनी के दस हाथ होनें चाहिंए। महिषासुरमर्दिनी के बाहों में सुशोभित सभी अस्त्र भी वही होंगे जो दुर्गा के साथ हैं।

 

सप्तमातृका- इनका नाम अंधकासुर संग्राम जो देवताओ के साथ हुआ था उसमें सहायता करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, स्कन्द, विष्णु, यम आदि देवों नें ब्रह्माणी, महेश्वरी, कौमारीवैष्णवी, बराही, इन्द्राणी एवं चामुण्डा की उत्पत्ति की । ये हीं सप्तमातृका कहलाई है।

 

अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि  देवताओं के साथ देवियों के भी विभिन्न स्वरूप हैं परन्तु इनका नामकरण अलग-अलग कार्यों तथा शक्तियों के  आधार पर किया गया है।

 


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