जब कोई कला अपनी रूप को
किसी शास्त्रीय नियम और सिद्धांत को ध्यान न देकर किया जाय तो वह कला रूढ़िवादी, अवैचारिक
और कुरूप कहलाएगी। परन्तु कलाओं कि गणना में यदि कोई सिद्धांत या आरेखन का स्रोत
को ढूँढा जाय तो हम आदिमानव कि कला को सर्वप्रथम स्थान देंगे। पाश्चत्य देशों में
तो कला आन्दोलन तक चला लेकिन इन आन्दोलनों ने ही कई वैसे तकनीक को जन्म दे दिए जिसकी
यहाँ चर्चा करना थोड़ा मुश्किल सा लगता है । इन्हीं कलाओं में नेव कला की
प्रसांगिकता पड़ती नजर आ रही है ।
नेव शब्द का विकास 19वीं सदी में हुआ है। यह
शब्द उन चित्रों (Paintings)
के लिए व्यवहार
में लाया जाता है जो कम या अधिक परिष्कृत पाश्चात्य या पाश्चात्य रंग में रंगे
समाज में तैयार किये गये थे । इसे हम अपरिष्कृत और बाल कला भी कहने से बंचित नहीं
रह सकते । नेव कला में प्रस्तुतीकरण की निपुणता, कृत्रिमता और विशेषज्ञता का अभाव
था । अर्थात् यह शब्द उन आधुनिक चित्रकारों के चित्रों की व्याख्या करने के लिए
प्रयुक्त किया गया है जो औपचारिक प्रशिक्षण या सुविज्ञता के बावजूद भी कुछ
अभिव्यक्त करने के लिए आह्वान को प्रमाणित करने में सफल हुए। उनका कार्य किसी शैली
या परम्परा से सम्बन्धित नहीं था।
नेव कला को कैसे पहचाने?
नेव कला की अपने आप में एक विशेषता है इसलिए इन चित्रों को पहचानना आसान है, लेकिन इन्हें परिभाषित करना मुश्किल है। इन चित्रों में बालसुलभ कल्पना शक्ति, अवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य तथा तेज एवं अप्रकृतिवादी रंगों की विशिष्टता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सैद्धांतिक नियम का कोई जरुरत नहीं है जैसे मन में कल्पनाशीलता पनपती रहे और हम अंकन करते रहें । इनमें यथार्थवादी (वास्तविकता) प्रभाव सम्भव नहीं है लेकिन उनका अभिप्राय पूर्णतः स्पष्ट है। कुछ आलोचकों ने इसे बीसवीं सदी की आदिम कला तथा समसामयिक चित्रकारों ने इसे नेव कला कहा है।
नेव कला प्राकृतिक रूप, (अकृत्रिम) सरल, साधारण, अनुभवहीनता, अप्रभाविता, सच्चाई एवं अविवेकशील
कार्यकलाप को ही नेव कला कहा जायेगा । नेव कलाकारों में उपरोक्त कार्यप्रणाली का
समावेश है। कुछ समय के लिए नेव के पर्यायवाची के रूप में आदिमकालीन शब्द का प्रयोग
किया गया जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई क्योंकि आदिमकालीन शब्द का प्रयोग पहले ही
खुले तौर पर पुनर्जागरण काल और इसके अतिरिक्त असभ्य समाजों के चित्रों के लिए किया
जाता रहा है। वास्तविकता यह है की आदिम ज़माने में कोई यांत्रिक व्यवस्था नहीं थे
और नहीं रंगों के बारे में कलाकारों को कोई तकनिकी ज्ञान था । वे अनवरत अपनी
विचारों को पत्थरों, शिलाओं और कंदराओं को पृष्ठभूमि मानकर चित्रकृति करते रहते थे
। इसका विषय प्राकृतिक दृश्य, पेड़-पौधे, मंवाकृतियाँ और पशु-पक्षी हुआ करता था ।
इसी प्रकार कुछ समय के
लिए नेव कला को अलग-अलग शब्दों जैसे लोक-कला, पॉपुलर आर्ट, बच्चों की कला या अवकाशीय पेन्टर का प्रयोग भी किया गया।
महँ शिक्षाविद स्कोटी
विल्सन (Scottie
Wilson) ने यह कहकर इसका
सार प्रस्तुत किया है कि, यह वह भाव है जो
आप व्यक्त नहीं कर सकते। आप इसके साथ जन्मजात हैं और यह अभी-अभी बाहर आयी है। इनके
कहने का तात्पर्य यह है कि यह कला अंतरात्मा की अभिव्यक्ति के साथ अनवरत रेखांकन की
स्वप्राविधि है ।
ग्रैड क्लॉउजीनेजर का
मानना है कि, "यह कला उन्नीसवीं शताब्दी
के वास्तविक विद्यालय की अक्रमबद्ध तरीके से तैयार की गई कृति है। " नेव कलाकारों
ने दूसरों की अपेक्षा लोगों को कम आकर्षित किया। यह असामान्य नहीं था लेकिन फिर भी
नेव कलाकार समाज की निगाह में कभी नहीं आते यदि युवा यूरोपियन कलाकारों ने अपने
कार्य के प्रति अभियान नहीं चलाया होता।
नेव कला का विकास
विभिन्न देशों के नेव
चित्रकारों ने एक-दूसरे से और उनके चारों तरफ जो प्रामाणिक कला उत्पादन थे उनसे
अलग प्रकार का कार्य किया। उनके अपने कार्यों और आदतों दोनों में अत्यधिक विविधता
थी। जरूरत या पसंद के आधार पर वे फुर्सत के समय के चित्रकार हैं। जो व्यावसायिक
रूप से चित्र बनाने का कार्य न करके अपने आनन्द के लिए चित्र बनाते हैं। चित्र
बनाने के लिए वे बिल्कुल अलग प्रणाली का प्रयोग करते हैं। इसके अन्दर वे पर्याप्त
या उपयुक्त कार्य की तलाश करते हैं और यह उनकी दैनिक दिनचर्या को चलाता है। इनमें
से अधिकतर मुख्यतः अपने आस-पास के रोजमर्रा के जीवन की घटनाओं और दृश्यों को चित्रित
करने में रुचि रखते हैं। उन्होंने वास्तविक विस्तृत विवरण पर अधिक ध्यान दिया। वे
चाहते थे कि उनकी कला में जितना सम्भव हो सके वास्तविक रूप ही प्रदर्शित हो।
उन्होंने अधिकतर आकृतियों में अधिक परिश्रम वाली अनुअंकन तकनीक का प्रयोग किया जो
उनकी पूर्ण छवि में दिखाई देती है। नेव चित्रकार अपने साधन के अनुसार ही चित्र में
गहराई और दूरी को बनाते थे, तथाकथित
मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य नेव चित्रों की सुस्पष्ट विशेषता है। इन चित्रों में
वस्तुओं और व्यक्तिचित्रों से सम्बन्धित आकृतियों को वास्तविक अनुपात के सम्बन्ध
बिना ही मनोवैज्ञानिक अभिरुचि द्वारा परिभाषित किया गया है। 19वीं सदी के अन्त में और 20वीं सदी के प्रारम्भ में
यह कला फोटोग्राफी से प्रभावित रही और फोटोग्राफ के आधार पर ही व्यक्ति चित्र भी
बनाये गये ।
हेनरी रूसो (Henri Rousseau), ग्राँडमा मोसर (Grandma Moser), मोरिश हर्टफिल्ड (Morrish Hirschfield), जोहन केन (John Kane), विल्सन बिगोड (Wilson Bigoud), इवान जेनरेलिक (Ivan Generalic), मिहाई दासोलु (Mihai Dosolu), निको पिरोस्मान (Nico Pirosman) आदि नेव कला के प्रमुख
चित्रकार है।
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