चित्रण
की तकनीकी सिद्धांत
वास्तविक या काल्पनिक विचारों को किसी रूप
में अंकित करना ही चित्रण कहलाती है | इसी कला को तकनीकी तौर पर हम अंकन या अनुरंकन
कहते हैं | कला हमारे जीवन से जुड़ी एक विधा है जो विभिन्न रूपाकारों में प्रदर्शित
की जाती है | किसी तरह
की चित्रण पद्धति में कलाकार द्वारा स्वच्छंद रूप से कलाकृति को सृजित करने की
इच्छा जागृत रहती है। चित्रण का माध्यम पोस्टर रंग, जल रंग, तैल रंग, गेरू खड़िया या पेस्टल हो, लेकिन इन समस्त
माध्यमों में सृजनात्मक पक्ष की प्रबलता मिलती है। इस माध्यम को रचनात्मक कहा जाता
है। इस पद्धति में वस्तु के दृश्यात्मक रूप को आयामिक रूप से व्यक्त करने का
प्रयास किया जाता है।
चित्रांकन में चित्रतल द्विआयामी ही होता है। इसमें लम्बाई व चौड़ाई का ही चित्रण कराया जाता है, वैसे इसमें त्रिआयामी प्रभाव भी दिखाया जा सकता है। यहाँ पर द्विआयामी रचना पद्धति का वर्णन निम्नवत् है-
1. द्विआयामी रचना में
इस तरह का अंकन किया जाय जैसे किसी आलेखन का किया जाता है।
2. किसी भी वस्तु का आकार उसकी महत्ता के अनुसार अंकित किया जा सकता है।
3. परिप्रेक्षीय व छाया-प्रकाशीय नियमों का पालन आवश्यक न होकर सभी आकार सपाट बनाये जाते हैं।
4. आगे व पीछे के आकार में पीछे वाले आकार छिपे हुए हों तथा पीछे के आकार आगे वाले से बड़े हों। आगे के आकार में उष्ण (गर्म) तथा पीछे के आकार में शीत (ठण्डे) रंगों का प्रयोग किया जाता है।
5. चित्रांकन में अग्रभूमि, मध्यभूमि व पृष्ठभूमि न दिखाकर विभिन्न रंगों से अलग-अलग पट्टियों के रूप में रचना की जाती है। इन्हीं पट्टियों के तलों पर आकार चित्रित होते हैं, जिससे कलाकृति में विशेष उभार व लावण्यता प्रतीत हो।
इस प्रकार कई बातों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न आकृतियों को द्विआयामी ढंग से संयोजित किया जाता है। एक ही चित्र के कई संयोजन तैयार किये जा सकते हैं।
त्रिआयामी रचना पद्धति
त्रिआयामी रचना पद्धति में किसी भी वस्तु के अंकन तीन आयामों में स्वरूपबद्ध किये जाते हैं। इस तरह की पद्धति को रेखाओं के माध्यम से अंकित किया जाता है:
1. कोई भी आकृति
पैंसिल से इस तरह बनायी जाय कि उसमें बिना छाया-प्रकाश से ही त्रिआयामी प्रभाव आ
जाय।
2. त्रिआयामी प्रभाव को दर्शित कराने के लिए रंगों के हल्के व गहरे तान लगायें, जिससे चित्र में तीनों आयाम स्पष्ट रूप से दिखायी दें।
3. कलाकृति के गहरे या छायांकित भाग को रंगीय तान के माध्यम से चित्रित किया जाता है।
4. कलाकृति में आकृतियों की सीमा रेखा को ज्यामितीय आधार पर स्वरूप प्रदान किया जाता है।
5. कलाकृति में गहन छाया-प्रकाश को अंकित करने के उपरान्त बाह्य सीमा रेखा को भी अंकित किया जाता है। बाह्य सीमा रेखा के अंकन में विभिन्न रंगीय तान के माध्यम से चित्रण किया जाता है।
6. मुख्य आकृति के रंग से अन्य आकृतियों या पृष्ठभूमि में विपरीत रंगों का प्रभाव चित्रित किया जाता है।
7. रंगीय तान के माध्यम से ही हल्के रंगों से कलाकृति में कोमलता तथा गहरे रंग से घनत्व का आभास होता है।
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