महाराजा संसारचंद और
पहाड़ी कला
भारत राजा और
महाराजाओं से भरी पड़ी है | इसके इतिहास को विश्व गुरु मानता है | भारत में
सांस्कृतिक बदलाव समय-समय पर अक्सर देखने को मिलते हैं, उसी कड़ी में पहाड़ी चतरा
शैली भी एक चीज है जो भारत के पूर्वोत्तर प्रान्तों यथा हिमालय के तराई क्षेत्रों
में फैली पायी गई है | जहाँ लघु चित्रकला के साथ कांगड़ा क्षेत्र में पहाड़ी कला के
नाम से जाना जाता है जिसका श्रेय महाराजा संसार चंद को जाता है | महाराजा संसारचंद
(1765-1823 ई.): का जन्म कांगड़ा जिले की पालमपुर तहसील के लांवा गाँव के समीप ही एक
गाँव में सन् 1765 ई. में हुआ था। इसके पिता 'तेगचंद' (1774-75 ई.) केवल एक वर्ष ही राज्य कर पाये और
उनकी मृत्यु हो गई। अपने स्वर्गवासी पिता के पश्चात् उसने 10 वर्ष की उम्र में सन्
1775 ई. कांगड़ा के किले पर आधिपत्य कर लिया और धीरे-धीरे सन् 1786 ई. तक समस्त पहाड़ी
राज्यों पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। कहा जाता है कि इनके वंश के पूर्वज कोई 'सुशर्मन' रहे हैं, जो महाभारत के युद्ध
में कौरवों के साथ थे।
सन् 1751 ई. से 1774 ई. तक कांगड़ा पर कटोच वंश के 'राजा घमंडचंद' का राज्य था। यूँ तो घमंडचंद को अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई, परन्तु वह चित्रकला के प्रति उदासीन ही रहा। उसके समय के बने चार व्यक्ति चित्र ही मिले हैं, जो महाराजा घमंडचंद के ही हैं। ये चित्र सिक्ख शैली में है तथा भद्दे हैं। गुलेर के राजा गोवर्धनचंद की मृत्यु सन् 1773 ई. में हो गई थी, अतः कलाकार अच्छी आजीविका के लिये अच्छे संरक्षक की शरण में कांगड़ा आये थे। सन् 1775 ई. के कटोच राजवंश को कीर्ति को उच्च शिखर पर पहुँचाने वाले संसारचंद का नाम इतिहास में अमर है। संसारचंद एक कुशल राजनीतिज्ञ, साहित्यप्रेमी, संगीतमर्मज्ञ, महान् योद्धा एवं कला के प्रणेता थे। संसारचंद को बाल्यकाल से ही चित्रों को संग्रहित करने का शौक था, उस समय पड़ोसी गुलेर राज्य में उच्च श्रेणी के कलाकार काम कर रहे थे। राजा संसारचंद जैसे कला संरक्षक के कला प्रेम के कारण कांगड़ा में भी चित्रकला का उदय आरम्भ हुआ। प्राप्त उल्लेखों द्वारा यह पता चलता है कि उनके दरबार में चित्रकारों का जमघट लगा रहता था। चित्रकार प्रतिदिन संसारचंद को चित्र बनाकर दिखाते और वह उनका निरीक्षण कर उन्हें परामर्श देता था।
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