रवींद्रनाथ ठाकुर और भारतीय सौंदर्य शास्त्र
रवींद्रनाथ ठाकुर (1861 से 1941) - भारतीय इतिहास में बहुत से बदलाव हमने देखा, जो प्राचीन इतिहास से चलकर आज का आधुनिक इतिहास तक कई महारथी, विद्वान, साहित्यकार, कलाकार, संगीतज्ञ, ज्योतिषी आदि जन्म लिए और उनकी कृति आज हमारे समाज, देश व विदेश में सराहनीय हैं | आज हम रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बारे में बातें करने के लिए उत्सुक हैं जिनके जीवन पर्यंत भारतीय इतिहास की कड़ी में किए गए कृतित्व आज भी सजीव है |
रविंद्रनाथ ठाकुर का जन्म कोलकाता के जोड़ासाँको ग्राम में सन 18 61 ईस्वी में हुआ | यह एक बंगाली ब्राह्मण परिवार था और उस समय शाही सामंती परिवार के रूप में उभरा था, जो समय हमारे गुलाम अंग्रेजी शासन काल की थी रवींद्रनाथ ठाकुर को बचपन से ही साहित्य, कला, संगीत, नाटक आदि के प्रति काफी लगाव था | यूं कहें तो कला अपनी छाप मनुष्य के मानसिक पटल पर अक्सर प्रभाव डालती है, जिससे उसके क्रियात्मक प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर विकास होता जाता है | कलाकार या साहित्यकार के मन में कल्पना की शक्ति काफी प्रबल होती है जिससे वह सृजनात्मक अभिव्यक्ति का प्रदर्शिन अपनी कला एवं रचना से करता है | आज हम रविंद्र नाथ के जीवन और उनके आदर्शवादी विचारधारा के साथ सौन्दर्यात्मक विचारों का उल्लेख करेंगे | रवींद्रनाथ ठाकुर कलाकार थे परंतु उनका विचार को कोई अपनी सिद्धांतों से बांध नहीं सकता था | यह एक स्वतंत्र कलाकार का मूलभूत सिद्धांत का प्रमाण है | ये किसी दर्शन विशेष से संबंध नहीं रखते थे | स्वच्छंद विचारधारा इनकी मूल स्वभाव थी | इनके मन में विभिन्न प्रकार के धर्म संस्कृति और संस्कारों का प्रवाह होते गया, जो इनके शैक्षणिक कार्य के बदौलत मिला रवींद्रनाथ ठाकुर की धार्मिक विचारधारा वैष्णवी थी क्योंकि इन्होंने भारतीय धर्म शास्त्रों जैसे पुराणों, उपनिषदों, आदि का अध्ययन किया था | इनके पिता ईश्वरीय शक्ति के प्रति काफी आकर्षित थे, ठीक उसी समय बाल्यावस्था में रवींद्रनाथ अपने संगीत में रुचि दिखा कर स्वर और लय को भजनों कीर्तनों में प्रदर्शित किया करते थे | इनकी परिवार की विशेषता यह थी कि प्रत्येक कलाकार साहित्यकार को सम्मान देना एक प्रथा थी | यही कारण था कि रबींद्रनाथ को यह बचपन से ही बड़े-बड़े साहित्यकारों, कवि, चित्रकारों नाटककार, समाज सुधारकों एवं राजनीतिज्ज्ञों के संपर्क में आने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ | इसीलिए ये कवि, नाटककार, कथाकार, संगीतकार व चित्रकार होने के साथ-साथ दार्शनिक, धर्म-मीमांसक और समाज चिंतक भी थे | यही वातावरण था कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी जीवनशैली को दार्शनिक पृष्ठभूमि में ढाल लिया जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय सौन्दर्यशास्त्रियों में अपना नाम को पंक्तिबद्ध कर लिया |
रविंद्रनाथ के
विचारों का अवलोकन करते हैं तो हमें उनके आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में संपूर्ण जीवन
की धारा समाहित होती नजर आती है इनका मानना था कि कोई अलौकिक शक्ति है जिसके कारण
हमारा देश ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व एक नियंत्रण में है | जिसका मूल प्रभाव हमारी
प्रकृति में देखी जा सकती है | सत्यम शिवम सुंदरम की व्याख्या करते हुए रवींद्रनाथ
ठाकुर ने संगीत, चित्र, मूर्ति, काव्य में अभिव्यक्ति को आनंदमय अनुभूति का बोध
कराया है | संगीत को ब्रह्मांड का एक भाग मांगते हैं | मनुष्य द्वारा की गई
अभिव्यक्ति का कोई भी रूप कला का प्रमाण मानी जाती है जिसे आनंद, शोक उल्लास, रौद्र
तथा आलिंगन का भाव उत्पन्न होता दिखाई देता है | कला के माध्यम से आत्मा स्वयं को
व्यक्त करती है | इसी प्रकार उनका मानना है कि कला ब्रह्म की अभिव्यक्ति है |
ब्रह्म संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है तथा प्रकृति के अंग जब स्वयं को व्यक्त
करते हैं तब कला है |
रवींद्रनाथ के जीवन पर पश्चात दर्शन का बात करें तो वह इन्हें काफी प्रभावित किया, इन्होंने पाश्चात्य भारतीय दर्शन को एक साथ जोड़ने का प्रयास किया जिससे आधुनिक सौंदर्यशास्त्र और भारतीय दर्शन में आमूलचूल परिवर्तन देखा गया है | साहित्यिक पक्ष में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इनका पूर्ण सहयोग रहा था क्योंकि इनका पूरा जीवन स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूत के रूप में जाना गया है | इन्होंने कला को एक संदेश देने के लिए बंगाल के बोलपुर में शांतिनिकेतन की स्थापना कर भारतीय दर्शन और साहित्य रचना के माध्यम से संपूर्ण विश्व में स्थान दिलाया है |
मानव जीवन के
हर एक पहलुओं का अध्ययन उन्होंने कलात्मक और भौतिक रूप से सौंदर्य में पिरोया है |
इन्हें भाषा के रूप में बंगला, हिंदी, अंग्रेजी में विशेष ज्ञान था जिसके कारण इन्हें
नोबेल पुरस्कार दिलाने में काफी बड़ा योगदान रहा बंगाली गद्य का अथक एवं आधुनिक
प्रयोग इनके के द्वारा किया गया जो कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के गद्य का एक स्वरूप भी
मानी जाती थी | इनके साहित्यिक जीवन को भारतीय आधुनिक सौंदर्यशास्त्र का एक पथ
प्रदर्शक माना जाता है | इन के विचारों में देवी-देवता, अध्यात्म और नारी का
चित्रण विशेष स्थान रखता है | अतः हमें मानना पड़ेगा
कि भारतीय सौंदर्य शास्त्र में रवींद्रनाथ ठाकुर का जीवन अति विशिष्ट है |
No comments:
Post a Comment