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Sunday, October 23, 2022

Mugal Chitra kala ki Visheshtaen मुग़ल चित्रकला की विशेषताएँ

 

मुगल चित्रकला की विशेषताएँ

 

मुगल चित्रकला का विशेष प्रभाव एवं शुभारम्भ का श्रेय हम अकबर(1557 ई॰-1605 ई॰)- के शासनकाल को मानते हैं। 15वीं सदी में ईरान की लघुचित्रकला अत्यंत उन्नत अवस्था में जाकर विहजात जैसे कलाकार को जन्म दे चुकी थी। हुमायूँ के काल में शीराज के चित्रकार अब्दुस्समद व तैब्रीज के मीर सैयद अली भारत आए जिनपर विहजाद का प्रभाव देखा गया। मुगल कला के विकास में कशमीरी और राजस्थानी कला का विशेष प्रभाव पड़ा क्योंकि इनकी शैली में भारतीयता की झलक मिलती है। अकबर कला प्रेमी था ही परन्तु उसके शासन व्यवस्था में हिन्दु-मुस्लिम आदि का कोई मतभेद नहीं था क्योंकि उसके दरबार में अनेक चित्रकारों जैसे कायस्थ, खाती व कहार जाति के लोगों को भी आश्रय मिला। अकबर ने चित्रकारों से पौराणिक कथाओं, इतिहास से संबंधित चित्र, व्यक्ति चित्र व कहानी के चित्र बनवाए। अकबरकालीन बाबरनामामें कुल 48 कलाकारों के नाम मिलते हैं जिसमें दसवन्त, बसावन, कशो, मुकुन्द आदि प्रमुख कलाकार थे। अकबर ने तवारीखे-खानदाने-तैमूरिया, जिसके चित्रकार दसवन्त थे तथा किस्सा अमीर हमजा, वकाआत बाबरी, अकबरनामाकी रचना करायी। इसके अलावा रज्मानामा महाभारत का अनुवाद तथा आईने अकबरी की रचना हुई।

मुगलकला में दूसरा समय कला के उन्मुखी विकास का जो था वह जहाँगीर का काल था।

जहाँगीर (1605 ई॰-1627 ई॰)- के शासनकाल में भी चित्रों का निर्माण करवाया गया। इनके समय के प्रमुख कलाकार विदेशी फार्रूख वेग, आकारिजा, अब्बुलहसन व मुराद थे तथा भारतीय कलाकार में गोवर्द्धन, मनोहर, दौलत और मंसूर थे। इस काल के चित्रों में रूढ़िवादियों के स्थान पर स्वभाविकता, बारीकी, सफाई, दरबारी अदब कायदों का प्रभाव आदि का सम्पूर्ण मिश्रण मिलता है। इनके काल में यूरोपीय छाया-प्रकाश का प्रभाव हल्की रेखाऐं तथा परदाज का प्रयोग बखूबी से मिलता है। जहाँगीर के चित्रों में धार्मिक, पौराणिक एवं ईरानी कला का भी समावेश मिलता है। जहाँगीर ने व्यक्ति चित्रों के अलावा प्राकृतिक चित्र, पशु-पक्षियों का चित्रण आदि का प्रमाण बहुत मिलता है। इस काल के चित्रों में मंसूर के द्वारा बनाया गया बाजपक्षी का चित्र अत्यंत उल्लेखनीय है।



शाहजहाँ(1628 ई॰-1658 ई॰)-ने कला में प्रमुखता के साथ स्थापत्य का कार्य खूब करवाया जिसका प्रमाण हम आगरा और दिल्ली में देखते हैं। इनके द्वारा बनवाया गया स्थापत्य विश्व प्रसिद्ध आगरा में ताजमहलऔर दिल्ली में लालकिला के रूप में विराजमान है। इसके अलावा भी कई तालाब व मस्जिदों का भी निर्माण हुआ है। शाहजहाँ के काल में चित्रकला की अवनति दिखाई देने लगती है। इस काल की चित्रकला में रेखाओं में कठोरता, रंगों में मोटापन तथा वर्ण-विधान अपरिस्कृत रूप में देखने को मिलते हैं जो मूलतः चित्रकला के अवनति के कारण माने जाते हैं। शाहजहाँ के समय स्याह कलम के अनेक चित्र बने हैं। इनके शासन काल में भी व्यक्ति चित्र, दरबारी चित्र व बादशाहों के चित्र व नारी प्रधान चित्र बनाए गये हैं। तदुपरान्त शाहजहाँ के बाद औरंगजेब एक ऐसा क्रूर बादशाह ने राजगद्दी पर बैठा कि कला क्या कलाकारों को देखना भी उसे पसन्द नहीं था और खुले रूप से वह चित्र और मूर्त्तियों का अति विरोधी था। इसने जो भी कुछ कला के कार्य करवाए वे मकबरे और मस्जिद थे जिन्हें या तो खुद बनवाया या तो फिर दूसरों के द्वारा बनाए गए स्थापत्य में बदलाव करवा दिया।

अंतः मुगल कला धीरे-धीरे समाप्त होती चली गयी। जब हम इनकी विशेषताओं के बारे में चर्चा करते हैं तब प्रमाणिक रूप से निम्नलिखित तथ्य सामने आते हैं-

1. चित्रों में एक चश्म का होना |

2. रेखांकनों में पतलापन |

3. आँखों की बनावट जौ के आकार का होना |

4. रंगों में तान की कमी का होना |

5. हाशिया का बनावट में प्राकृतिक दृश्य का अंकन |

6. दरबारी चित्रण, युद्ध एवं

7. मेहराबों और शंकुनुमा ज्यामितीय अंकन आदि |

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