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Saturday, October 22, 2022

संगीत में शोध Research in Music

 संगीत में शोध

स्वतंत्रता के साथ जहाँ हमें अपने देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का एक सुनहरी अवसर प्राप्त हुआ, वहाँ भार तीय साहित्य, कला व संस्कृति भी उन्नति की ओर अग्रसर हुई । विज्ञान तथा कला के विभिन्न क्षेत्रों में आज हमने जो आत्म निर्भरता पाई है, वह शोध का ही परिणाम है । संगीत जगत् भी इससे अछूता नहीं रहा है । संगीत, जो पहले गिने-चुने व्यक्तियों की अमानत समझा जाता था, आज समाज का अभिन्न अंग बन चुका है। यही नहीं, विदेशों में भी भारतीय संगीत का स्थान दिन-प्रतिदिन ऊँचा होता जा रहा है। भारतीय संगीत का आरंभ वैदिक काल से माना गया है । चारों वेदों ('ऋग्वेद', 'अथर्ववेद', 'सामवेद' तथा 'यजुर्वेद') में से केवल 'सामवेद' ही संगीतात्मक सामग्री से युक्त है । 'सामवेद' को छोड़कर अन्य तीनों वेदों पर कई भाष्य, टीकाएँ तथा आलोचनात्मक अध्ययन मिलता है । लेकिन 'सामवेद' पर हुआ इस प्रकार का कार्य बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है, जिससे कई तथ्य पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं हैं । बतः इसके लिए शोध कार्य की आवश्यकता अनिवार्य होती जा रही है। संगीत के अनेक पहलुओं पर शोध कार्य हो रहा है, किंतु शोध कार्य की सामग्री जुटाने में शोधकर्ताओं को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।


 सबसे बड़ी मूल समस्या है-शिक्षण संस्थाओं में संगीत विभागों का निम्न स्तर विश्वविद्यालयों में संगीत-विभाग को सरकार द्वारा जितनी आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए उससे कहीं कम मिल पाती है। अतः अधिक तर संस्थाओं में संगीत प्राध्यापकों की संख्या पूर्ण नहीं होती । बहुत-से महाविद्यालयों में तो वाद्य संगीत तथा कंठ-संगीत का काम केवल एक ही अध्यापक द्वारा चलाया जा रहा है । इसके अलावा बहुत-सी संस्थाओं में संगीत वाद्य भी पूर्ण मात्रा में उपलब्ध नहीं होते । इन्हीं कारणों से विद्यार्थियों का शिक्षण उच्च कोटि का नहीं हो पाता, क्योंकि एक ही अध्यापक पर दोनों विषयों का कार्य-भार तथा सीमित समय होने के कारण पूरा पाठ्यक्रम शीघ्रता से समाप्त करना होता है। विद्या थियों को संगीत शिक्षण देते समय जितनी रुचि, धैर्य और क्षमता का प्रयोग उसे करना चाहिए, उतना वह नहीं कर पाता। परिणाम स्वरूप विद्यार्थियों में संगीत के प्रति सही जागरूकता और प्रेरणा उत्पन्न नहीं हो पाती। ऐसा होने पर शोध कार्य का स्तर भी निम्न रह जाता है ।

 इसके अतिरिक्त शिक्षा-संबंधी उच्चस्तरीय प्रतियोगिताओं में कहीं भी संगीत विषय शामिल नहीं किया गया है । फलस्वरूप शोध कार्य तो क्या, संगीत विषय के प्रति विद्यार्थियों में रुचि ही नहीं रहती। वे उसे एक साधा रण विषय समझकर छोड़ देते हैं। उदाहरण के तौर पर आई० ए० एस० जैसी प्रतियोगि ताओं में, सभी विषयों को स्थान दिया गया है, लेकिन संगीत विषय अभी तक शामिल नहीं किया गया। अतः एक उच्च कोटि के शोध कार्य के लिए सरकार को चाहिए कि वह इस प्रकार की सभी बड़ी प्रतियोगिताओं में संगीत - विषय को भी लें, ताकि लोगों में इस

 विषय का प्रचार बढ़े और अधिक-से-अधिक
 विद्यार्थी संगीत शोध कार्य में रुचि लें ।
 बहुत-से विश्वविद्यालयों और संगीत संस्थाओं में संगीत-संबंधी पुस्तकालयों का स्तर भी निम्न कोटि का है। अधिकतर पुस्तकालयों में संगीत-संबंधी मौलिक ग्रंथों का अभाव पाया जाता है। कुछ मौलिक ग्रंथों के जो अनुवाद पाए गए हैं, उनमें बहुत-से तथ्य स्पष्ट नहीं हैं। ऐसे में शोध कार्य करनेवाले विद्यार्थियों को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें तो प्रका शित ही नहीं हो रहीं, जैसे कि 'प्रणव 'भारती'। इसके साथ-साथ संगीत-पुस्तकों के संबंध में भाषा की विविधता भी एक बहुत बड़ी कमी है। अँग्रेजी भाषा में तो बहुत कम पुस्तकें हैं, जिससे अंग्रेजी माध्यम में काम करने वाले विद्यार्थियों को बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ता है। ऐसे में विद्यार्थियों का मूल्यवान् समय व्यर्थ नष्ट होता है। अतः शोध कार्य भी उतना उच्च कोटि का नहीं हो पाता ।

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