लोक कला है ?
लोक कला हमारे समाज के रूढ़िवादी विचारों द्वारा विकसित एक विधा है जिसे हम अपनी अविव्यक्ति को किसी रूप में या भाव से प्रदर्शित करते हैं। लोक जीवन की दिन प्रतिदिन सामान्य गतिविधियों के फलस्वरूप उनके आदतों को मूर्त रूप देना लोक कला की विशेषता है। यह कला हमारे देश ही नहीं बल्कि पाश्चात देशों में भी विकसित है। परन्तु भारतीय लोककला की गरिमा पूरे विश्व में अद्वितीय मानी जाती है।
इन लोक कलाओं को हम विभिन्न आयामों एवं प्रकारों के द्वारा जानते और पहचानते हैं। संगीत, नृत्य, गायन, वादन, चित्रकला आदि के साथ -साथ हस्तशिल्प, हस्तकर्म, कशीदाकारी, बुनाई, कढ़ाई, मूर्तिशिल्प, वास्तु विन्यास ये सभी लोक कला के बारे में देखे जाते हैं। भारत एक धर्म संस्कृति का देश है जहाँ मूर्तिपूजा यहाँ के समाज की एक पारम्परिक स्वाभाव है। यह कला हमारे समाज से निकल कर पूरे विश्व में फैली है।
मुख्यतः लोक कला को विभिन्न श्रेणियों व प्रकारों में देखा जाता है :
- संगीत
- चित्रकला
- मूर्तिकला
- कर्मकांड
- पूजा-पाठ
- नाटक
लोक
कला में हम संगीत के क्षेत्र की बातें करना चाहेंगे। यह कला विभिन्न प्रांतों से ली गई है
तथा वहां की आम जीवन शैली तथा जनजातीय समाज की एक परंपरागत कला के रूप में जानी जाती है।
उत्तराखंडी संगीत - यह लोक संगीत हमारे देश के उत्तरी प्रांतों में अर्थात हिमालय के तराई इलाकों में खास कर प्रचलित है। इसके प्रयोजनों का मुख्य समय शादी, उत्त्सव, जन्म, विदाई आदि के अवसरों पर गायी तथा बजाई जाती है जिसमें नृत्य एवं संगीत के विशेष कार्यक्रम किये जाते हैं
पण्डवानी लोक संगीत- हमारा राष्ट्र देश भक्ति के साथ-साथ धार्मिक आख्यानों व पुरातन शास्त्रों पर आधारित उनके देवी-देवताओं के जीवन आदि पर प्रदर्शित किया गया है। इस लोक संगीत में तीजन बाई, झाडूराम देवगन, ऋतू वर्मा, उषा बालें, शांति चेलर और कई अन्य कलाकारों के अथक प्रयासों से यह कला आज भी संरक्षित है। पांडवाणी संगीत में महाभारत के आख्यानों पर आधारित विषय संकलित हैं।
रबिन्द्र संगीत - हमारे देश में आजादी के समकालीन बंगाल में आन्दोलनों का दौर था परन्तु उसके पूर्व ही वहां के कलाकारों ने एक लोक संगीत की अवधारणा को जन्म दिया जो रबिन्द्र संगीत के नाम से जाना गया। इस लोक संगीत में मूल रूप से कविगुरु रबिन्द्र नाथ टैगोर ने एक कवि और एक लेखक होने के साथ इसे बढ़ावा दिया। रबिन्द्र संगीत में स्वरों के तालमेल को बंगाली स्वर पद्धति में संकलित किया गया है। इस के बंगाली जीवन के साथ-साथ विभिन्न प्रांतों में भी गाया और बजाय जाता है।
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